मोदी युग में सांस्‍कृतिक भारत का अभ्युदय : विष्णुदत्त शर्मा

Amit Sengar
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भोपाल,डेस्क रिपोर्ट। सदियों से भारत (india) अपनी सांस्कृतिक आध्यात्मिकता के लिए विख्‍यात है। यह देश आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र रहा है। यहां बहने वाले आस्था के सैलाब को सारी दुनिया देखने आती रही है। अनेक विदेशी यात्रियों ने भी अपने संस्मरणों में इनका उल्लेख किया है। हजारों साल के इतिहास में हमारे श्रद्धा केंद्रों को विधर्मियों द्वारा ध्वस्त किये जाने के बावजूद ये पवित्र स्थल अपने पुण्य प्रवाह के साथ वर्षों से टिके हुए हैं। अपनी उत्कृष्टता का दंभ भरने वाले मिस्र, रोम जैसी सभ्यताओं के चिन्ह आज नहीं के बराबर हैं, उनका एक भी सांस्‍कृतिक अंश अपने मूल स्वरूप में उपस्थित नहीं है। परन्तु भारत एकमात्र ऐसा देश है, जो यह दावा कर सकता है कि उसने लाखों विपत्तियों के बावजूद अपनी आध्यात्मिकता और आस्था केंद्रों की प्राण शक्ति से अपने सनातन चरित्र को जीवंत रखा है। बहरहाल, आजादी का सूरज निकलने के बाद उम्मीद थी कि स्वाधीन भारत की सरकारें इस पर ध्यान देंगी और हमारे आस्था के केंद्र अपनी प्राचीन अवस्था में पुर्नस्‍थापित होंगे परन्तु एक खास तरह के तुष्टिकरण की राजनीति ने अपनी जगह बना ली और भारत के अनेक श्रद्धा केंद्र विकास की राह ताकते रहे।

यह दैवीय संयोग ही है कि 2014 से भारत के आध्यात्मिक जगत में सांस्कृतिक उत्थान के एक नये युग की शुरुआत हुई। 500 वर्षों से विवादित श्रीराम मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ और आज मोदी सरकार के नेतृत्‍व में तेजी से मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। भारी प्राकृतिक आपदा झेल चुके हमारे चारधाम में एक केदारनाथ धाम का कायाकल्प भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति से सम्पन्न हो चुका है। उत्तराखंड में चारधाम यात्रा नामक परियोजना परवान चढ़ चुकी है और लगभग सभी दुर्गम आस्था केंद्रों पर अब 12 महीने आसानी से पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश और कर्ण प्रयाग को रेलवे मार्ग से भी जोड़ा जा रहा है, जो 2025 तक पूरा होगा। कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के बाद मंदिरों के पुनरुद्धार का काम शुरू हुआ है। श्रीनगर स्थित रघुनाथ मंदिर हो या माता हिंगलाज का मंदिर, सभी प्रमुख मंदिरों के स्वरूप को नवजीवन दिया जा रहा है। पिछले साल भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी का पुनरुद्धार नरेंद्र मोदी के कर कमलों से ही संभव हुआ है। वह उनका संसदीय क्षेत्र है इसलिए काशी का विकास हुआ, ऐसा नहीं है। क्योंकि पहले भी अनेक बड़े नेता वहां का संसदीय नेतृत्व कर चुके हैं लेकिन किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि काशी की सकरी गलियों में विश्वनाथ भागवान के लिए कॉरीडोर बन सकता है। परन्तु यह संभव हुआ है और बहुत तेज गति से हुआ है। आज काशी अपने नए रंगरूप में अपनी आध्यात्मिक पहचान के साथ चमचमा रही है। काशी न्यारी हो गई है। जहां दुनिया भर के लोग आकर वास्तविक भारत और उसकी आध्यात्मिक राजधानी को निहार रहे हैं।


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मुझे अपने आप पर गर्व है कि में एक पत्रकार हूँ। क्योंकि पत्रकार होना अपने आप में कलाकार, चिंतक, लेखक या जन-हित में काम करने वाले वकील जैसा होता है। पत्रकार कोई कारोबारी, व्यापारी या राजनेता नहीं होता है वह व्यापक जनता की भलाई के सरोकारों से संचालित होता है। वहीं हेनरी ल्यूस ने कहा है कि “मैं जर्नलिस्ट बना ताकि दुनिया के दिल के अधिक करीब रहूं।”