साहित्यिकी : आइये पढ़ें प्रसिद्ध कहानीकार मोहन राकेश की कहानी ‘आर्द्रा’

‘आज शनिवार है और अपने पढ़ने की आदत को बेहतर बनाने के क्रम में आज हम पढ़ेंगे लेखक कहानीकार मोहन राकेश की एक कहानी। इनका जम 8 जनवरी 1925 के हुआ और ये नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर माने जाते हैं। आप हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और उपन्यासकार हैं। मोहन राकेश की डायरी हिंदी में इस विधा की सबसे सुंदर कृतियों में एक मानी जाती है। आइये पढ़ते हैं उनकी कहानी आर्द्रा’

                                                            आर्द्रा

बचन को थोड़ी ऊँघ आ गई थी, पर खटका सुनकर वह चौंक गई। इरावती डयोढ़ी का दरवाज़ा खोल रही थी। चपरासी गणेशन आ गया था। इसका मतलब था कि छ: बज चुके होंगे। बचन के शरीर में ऊब और झुंझलाहट की झुरझुरी भर गई। बिन्नी न रात को घर आया था, न सुबह से अब तक उसने दर्शन दिए थे। इस लड़के की वजह से ही वह परदेस में पड़ी हुई थी, जहाँ न कोई उसकी जबान समझता था, न वह किसी की जबान समझती थी। एक इरावती थी, जिससे वह टूटी-फूटी हिन्दी बोल लेती थी, हालाँकि उसकी पंजाबी हिन्दी और इरावती की कोंकणी हिन्दी में ज़मीन-आसमान का अन्तर था। जब इरावती भी उसकी सीधे-सादे शब्दों में कही हुई साधारण-सी बात को न समझ पाती, तो वह बुरी तरह अपनी विवशता के खेद से दब जाती थी और इस लड़के को रत्ती-भर चिन्ता नहीं थी कि माँ किस मुश्किल से दिन काटती है और किस बेसब्री से मेरा इन्तज़ार करती है। आए तो घर आ गए, नहीं तो जहाँ हुआ पड़े रहे।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।