बुद्ध पूर्णिमा विशेष- “भगवान बुद्ध के चिंतन की प्रासंगिकता”- डॉ अशोक कुमार भार्गव

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। डॉ अशोक कुमार भार्गव भारतीय प्रशासनिक सेवा (2001 बैच) के वरिष्ठ अधिकारी हैं। डॉ अशोक कुमार भार्गव ने भगवान बुद्ध पर लेख लिखा है “बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर पढिए उनका लिखा यह खास लेख”-   भगवान बुद्ध भारत की सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर है। उनका समग्र जीवन दर्शन मानवीय कल्याण के हितार्थ ज्ञान की खोज के लिए मात्र 29 वर्ष की आयु में परम वैभव के साम्राज्य और सांसारिक सुखों के आकर्षण के परित्याग की पराकाष्ठा है। उनका जन्म 583 ईसा पूर्व नेपाल की तराई में लुंबिनी में हुआ था। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। जिसका अर्थ है अभिलाषा का पूर्ण हो जाना क्योंकि उनके जन्म से सभी की अभिलाषाएं पूर्ण हुई इसलिए उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया। पिता शाकय गणराज्य के राजा शुद्धोधन और माता महामाया थीं। इनके जन्म को हिमालय के तपस्वी ऋषि असिता ने अलौकिक असाधारण बताते हुए स्वयं जीवात्मा के दर्शन करते हुए कहा कि यह बालक समस्त मानव जाति के लिए सिद्धार्थ है। यह या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या लोक कल्याण के लिए धर्म चक्र प्रवर्तित करेगा जो इससे पहले संसार में कभी नहीं हुआ है।

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पिता चाहते थे कि सिद्धार्थ वैराग्य धारण नहीं करें सम्राट बने। इसलिए संसार की समस्त सुख सुविधाएं सिद्धार्थ को उपलब्ध कराई। रूपवती राजकुमारी यशोधरा से विवाह किया बाद में एक पुत्र राहुल की प्राप्ति हुई किंतु वे सांसारिक मोह में बंध न सके। एक दिन मार्ग में उन्होंने अति कृशकाय रोगी, वृद्ध पुरुष तथा एक मृतक को देखा तो सारथी छंदक ने बताया कि एक न एक दिन सभी की यही दशा होनी है।एक साधु को भी देखा। यद्यपि त्रिपिटक आदि ग्रंथों में इन घटनाओं का कोई उल्लेख नहीं है। संसार क्षणिक और दुखद ये जान है वे सब कुछ त्याग कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े। 6 वर्षों तक घोर तपस्या की किंतु ज्ञान की पिपासा शांत नहीं हुई। जनश्रुति है कि स्त्रियों के एक गीत को उन्होंने सुना “वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ो, ढीला छोड़ देने से उनसे सुरीला स्वर ना निकलेगा। तारों को इतना कसो भी मत जिससे वे टूट जाएं।” उन्होंने गीत के मर्म को समझा कि किसी भी बात की अति ठीक नहीं। उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाया। इसके बाद गया जाकर वट वृक्ष के नीचे इस संकल्प के साथ समाधिस्थ हो गए कि जब तक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक वे समाधिस्थ ही रहेंगे। घोर तपस्या के सात दिनों पश्चात उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। वे तथागत और महात्मा बुद्ध हो गए।


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Harpreet Kaur