हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है, और कार्तिक पूर्णिमा सभी पूर्णिमा में बड़ी मानी जाती है। इस दिन दान और स्नान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि कार्तिक मास भगवान विष्णु के प्रिय मास में से एक है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद दान-पुण्य करने से कई तरह के पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान और तुलसी पूजा भी की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ समारोह से घर में प्रसन्नता आती हैं। इस दिन घी का दान करने से संपत्ति बढ़ती है और ग्रहयोग के कष्ट दूर होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने वालों को शिव जी की असीम कृपा प्राप्त होती है।
कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 18 नवंबर (गुरुवार) दोपहर 11 बजकर 55 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 19 नवंबर (शुक्रवार) दोपहर 02 बजकर 25 मिनट तक
कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाती है देव दिवली
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार त्रिपुरासुर राक्षक ने पूरी धरती और स्वर्ग लोक में आतंक फैला था जिससे सभी देव परेशान थे। सभी देवगण उस राक्षस का अंत करने के लिए भगवान शिव से सहायता मांगने गए। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षक का वध कर दिया जिससे देवलोक में सभी देवता प्रसन्न हो गए और भोलेनाथ की नगरी काशी में पहुंचे। माना जाता है कि जिस तिथि पर देवता पृथ्वी पर आए थे वो दिन कार्तिक पूर्णमा का था। कार्तिक पूर्णिमा पर स्वर्गलोक से देवी-देवता पृथ्वीलोक पर आते हैं और वाराणसी के गंगा घाट पर स्नान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाई जाती है। इस दिन देवताओं के धरती पर आने की खुशी में घाटों को दीयों से रोशन किया जाता है और तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली भी मनाई जाती है।