काश Mother’s Day के अगले दिन भी मां के पैरों में दर्द नहीं जन्नत ही होती : सुंदर कहानियों के आगे और पीछे के सच को बयां करता अनुसुइया शर्मा का यह लेख

Mother’s Day : ये एक ऐसा दिन हैं जिस दिन बच्चे अपनी मां पर बहुत प्यार लुटाते हैं, आज के आधुनिक संसाधनों से भरपूर सोशल मीडिया वाले युग में मां के लिए कल्पनाओं से परे बहुत कुछ रचा जाता है, लिखा जाता है और दर्शाया जाता है, लेकिन कई बार ये सब उस पानी के बुलबुले का जैसा होता है जिसका अस्तित्व कुछ क्षण का होता है, मदर्स डे से जुड़ा दिल को झकझोर देने वाला अनुसुइया शर्मा का आलेख यहाँ पढ़िए…

स्वप्न या सच

अचानक चिड़ियों के कलरव से मेरी आंख खुली। खुले वाता यन में से भोर का हल्का हल्का उजास कमरे में फैल रहा था। मैंने अपने इर्द-गिर्द नजर घुमाई पर यह क्या कमरे में मैं नितांत अकेली थी। तो जो अभी देखा था क्या सपना था। मैंने सपने में देखा मैं सो रही थी इतने में ही मेरे बेटे व बहुओं ने आकर हैप्पी मदर्स डे कहकर मुझे उठाया और मेरे पैर छूकर मुझे उपहारों से लाद दिया। एक बहू ने गरमा गरम चाय ला कर मेरे हाथों में थमायी। कितना सुखद एहसास था काश यह सच हो पाता। धीरे-धीरे अपने दर्द भरे घुटनों को सहलाती हुई उठ खड़ी हुई रसोई में से चाय लाने के लिए। उठते ही मेरी नजर कोने में रखी मेज पर गई जहां फूलों का एक मुरझाया हुआ गुच्छा (जिसे आजकल बुके कहते हैं) एक चॉकलेट का डिब्बा व दो साड़ियों के पैकेट रखे थे। धीरे-धीरे स्मृतियों की परत खुलने लगी अरे यह सपना नहीं सच था। कल मातृ दिवस था। और मेरी कल की सुबह कुछ इसी तरह हुई थी।


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Atul Saxena

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ.... पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....