भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश की राजनीति में इस समय दो तस्वीरें चर्चा का विषय बनी हुई हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के धरने पर बैठने की और दूसरी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की। सभी जानते हैं कि दिग्विजय सिंह सीएम शिवराज से मिलने का समय मांग रहे थे लेकि न समय मिलने के बाद निरस्त हो गया। जिससे नाराज होकर वो धरने पर बैठ गए लेकिन उधर कमलनाथ से शिवराज ने करीब घंटे तक मुलाकात की, इस मुलाकात के बाद कमलनाथ दिग्विजय के धरने में शामिल हो गए। अब लोग इसके राजनीतिक मायने निकाल रहे हैं।
मध्य प्रदेश में इस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दिग्विजय सिंह के बीच होने वाली मुलाकात का मुद्दा गरमाया हुआ है। मुलाकात निरस्त होने से नाराज होकर दिग्विजय सिंह अपने समर्थकों और किसानों के मुख्यमंत्री आवास के पास धरने पर बैठ गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सीएम शिवराज के पास डूब पीड़ित किसानों से और एक पूर्व मुख्यमंत्री से मिलने का समय नहीं है। इसलिए हम उनका इन्तजार आवास के बाहर करेंगे।
उधर दिग्विजय के धरने के बीच एक दूसरी तस्वीर सामने आई जिसने प्रदेश की राजनीति ही नहीं कांग्रेस के अंदर की राजनीति को भी गरमा दिया। ये तस्वीर थी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बीच मुलाकात की। तस्वीर में दोनों नेता एक दूसरे का हाथ थामे मुस्कुराते दिखाई दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि करीब आधे घंटे तक दोनों नेता आपस में बात करते रहे।
मुलाकात के बाद दिग्विजय के धरने में पहुंचे कमलनाथ ने शिवराज सिंह से मुलाकात पर मीडिया को सफाई दी। कमलनाथ ने कहा कि मैं स्टेट हैंगर पर छिंदवाड़ा से आया था मुख्यमंत्री कहीं जा रहे थे तभी हमारी मुलाकात हुई, कोई पहले से तय नहीं था। शिवराज ने ही मुझे दिग्विजय सिंह के धरने की बात बताई। उसी के बाद मैं दिग्विजय के धरने में शामिल होने आया।
हालाँकि अब भाजपा शिवराज और कमलनाथ की मुलाकात पर चुटकी ले रही है। वरिष्ठ नेता हितेश बाजपेई ने मुलाकत की तस्वीर ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा – “ये दुनिया वाले पूछेंगे, मुलाकात हुई, क्या बात हुई ! ये बात डिब्बी से न कहना!” उन्होंने एक और ट्वीट किया – “नकुल-बकुल” का ध्यान रखना सर जी! मैं जरा अब दिग्विजय की “नौटंकी” में बैठ आऊं !
पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....
पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....