कविता की ज़मीन पर बिखरे आस्था के बीज, भोपाल में उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कवियों का समागम

Kavita ki zameen :  इतिहास गवाह है,जब-जब लोकतांत्रिक मूल्यों पर ख़तरा मंडराया और फासीवादी ताक़तों द्वारा आमजन के आपसी विश्वास को नेस्तनाबूद करने की कोशिशें हुईं, हमारी कविता ऐसी ताक़तों के ख़िलाफ़ हमेशा कारगर साबित हुई है। असंख्य फूँकें इक्कट्ठा हुईं और फेंफड़ों की थकान की हद तक कविता की लौ को बुझाने की भरसक कोशिशें हुईं। कविता की लौ टिमटिमाई ज़रूर लेक़िन कभी बुझी नहीं। बल्कि एक सच्ची शपथ और हमारी दुहाई बनती रही कविता।

कविता की ज़मीन-2

इतिहास गवाह है,जब-जब लोकतांत्रिक मूल्यों पर ख़तरा मंडराया और फासीवादी ताक़तों द्वारा आमजन के आपसी विश्वास को नेस्तनाबूद करने की कोशिशें हुईं, हमारी कविता ऐसी ताक़तों के ख़िलाफ़ हमेशा कारगर साबित हुई है। असंख्य फूँकें इक्कट्ठा हुईं और फेंफड़ों की थकान की हद तक कविता की लौ को बुझाने की भरसक कोशिशें हुईं। कविता की लौ टिमटिमाई ज़रूर लेक़िन कभी बुझी नहीं। बल्कि एक सच्ची शपथ और हमारी दुहाई बनती रही कविता।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।