Holi 2024: होली का त्योहार नजदीक है। इस दिन का लोग बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। साथ ही होली के दिन लोग आपसी मन मुटाव को मिटाकर लोगों के साथ रंग खेलते हुए देखे जाते हैं। वहीं देश के प्रमुख शहरों में जैसे मथुरा, वृंदावन, काशी आदि धार्मिक स्थलों पर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि देश में कुछ ऐसे भी जगह हैं, जहां होली के त्योहार का नामोंनिशान नहीं नजर आता है। आइए जानते हैं कि ये जगह कौन-से हैं।
झारखंड, दुर्गापुर
झारखंड राज्य के दुर्गापुर नामक गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। यहां करीब 200 साल से होली का त्योहान नहीं मनाया गया है। दरअसल, इस गांव में मान्यता के आधार पर एक कहानी प्रचलित है कि एक बार राजा के बेटे की होली के दिन ही मौत हो गई थी, इसी वजह से यहां होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। वहीं इस गांव के लोग होली का त्योहार मनाने के लिए दूसरे गांव में जाते हैं।
उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले के कई गांवों में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है, जिनमें कुरझन, जौदला और क्विली गांव शामिल हैं। दरअसल, इस गांव के लोगों की मान्यता है कि यहां की देवी त्रिपुर सुंदरी को शोरगुल पसंद नहीं है। साथ ही देवी गांव की रक्षा करती है इसकी भी मान्यता प्रचलित है। इसलिए यहां के लोग होली के त्योहार को नहीं मनाते हैं।
गुजरात, बनासकांठा
गुजरात के बनासकांठा जिले के एक गांव रामसन गांव में भी करीब 200 साल से होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। मीडिया रिपोर्ट् के मुताबिक इस गांव के लोगों की मान्यता है कि गांव में कुछ संतों का श्राप मिला है, जिसके कारण यहां के लोग होली का त्योहान नहीं मना पाते हैं।
तमिलनाडु
देश के सबसे निचले हिस्से के राज्य तमिलनाडु में भी होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। दरअसल, यहां एक स्थानीय त्योहार मासी मागम मनाया जाता है, जिसके कारण होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है।
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Shashank Baranwal
पत्रकारिता उन चुनिंदा पेशों में से है जो समाज को सार्थक रूप देने में सक्षम है। पत्रकार जितना ज्यादा अपने काम के प्रति ईमानदार होगा पत्रकारिता उतनी ही ज्यादा प्रखर और प्रभावकारी होगी। पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिये हम मज़लूमों, शोषितों या वो लोग जो हाशिये पर है उनकी आवाज आसानी से उठा सकते हैं। पत्रकार समाज मे उतनी ही अहम भूमिका निभाता है जितना एक साहित्यकार, समाज विचारक। ये तीनों ही पुराने पूर्वाग्रह को तोड़ते हैं और अवचेतन समाज में चेतना जागृत करने का काम करते हैं। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने अपने इस शेर में बहुत सही तरीके से पत्रकारिता की भूमिका की बात कही है–
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
मैं भी एक कलम का सिपाही हूँ और पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे साहित्य में भी रुचि है । मैं एक समतामूलक समाज बनाने के लिये तत्पर हूँ।