क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की 147वीं जयंती: महानायक भगवान बिरसा मुंडा, अंग्रेज़ों के खिलाफ उठाए तीर कमान, कैसे बने आदिवासियों के रक्षक

भोपाल, डॉ अशोक कुमार भार्गव। विश्व के सबसे बड़े भारत के स्वाधीनता संग्राम की पूर्व पीठिका को निर्मित करने में जनजातीय आंदोलनों (Birsa Munda jayanti) की सार्थक भूमिका रही है। यद्यपि इतिहासकारों ने इन अनसुने, अल्पज्ञात आंदोलनों की महत्ता को रेखांकित करने में न्याय नहीं किया। केन्या के लीडर जोमो केन्याटा ने कहा था कि ‘जब ब्रिटिश अफ्रीका आए तब उनके हाथों में बाइबल थी और हमारे पास जमीन, उन्होंने हमसे कहा चलो प्रार्थना करते हैं और जब हमने आंखें खोली तो हमारे पास बाइबिल थी और उनके पास हमारी जमीन।’

भारत में भी अंग्रेजों ने अपनी साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी कूट नीतियों से हमारी अमूल्य वन संपदा का निर्ममता से शोषण कर आदिवासी (Tribal Pride Day) अंचलों के मौलिक स्वरूप को विकृत कर देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ दिया। इस ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्यास्त भी नहीं होता था और विद्रोही कवि अर्नेस्ट जोन्स के शब्दों में ‘वह इतना क्रूर भी हो गया था कि उसके उपनिवेशों में रक्त कभी नहीं सूखता था।’


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Kashish Trivedi

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