जुखाम को ना करें नजरअंदाज, हो सकता है खतरनाक

हेल्थ, डेस्क रिपोर्ट। सदियां आई नहीं कि सभी माताएं अक्सर चिल्लाना शुरु कर देती हैं, कपड़े पहन लो नहीं तो जुखाम हो जाएगा, सिर ढक के बाहर निकलना सर्दी लग जाएगी, और होता भी यही है, ज़रा सी चूक और हो गया जुखाम। फिर क्या अदरक की चाय, सोंठ का हलवा, और न जाने क्या क्या। पर क्या हो जब इतने कुछ के बाद भी जुखाम जस का तस रहे?

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बात करें मेडिकल भाषा की तो जुखाम एक तरीके का वायरल इन्फेक्शन है जिस वजह से इंसान को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है जैसे नाक–कान बंद होना, खांसी और छींके आना, सर दर्द होना, गले में खराश होना या इंसान को बुखार भी आ सकता है। अक्सर देखा गया है कि साधारण जुखाम ज्यादातर 10 से 15 दिन में बिना इलाज या इलाज के साथ खुद ही ठीक हो जाता है। व्यस्कों के मुकाबले जुखाम बच्चों में ज्यादा और जल्द होता है, इनमें भी सबसे ज्यादा 6 से 10 साल के बच्चे बुखार और सर्दी की चपेट में आते हैं। खासतौर पर ऐसे बच्चे जिनके परिवार के बड़े सदस्य धूम्रपान करते हैं या जो बच्चे कैंसर, हृदयारोग, अस्थमा, सीओपीडी जैसी बीमारियों से ग्रसित हों उन्हें सर्दी जुखाम होने की संभावना सबसे अधिक होती है।


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।