ग्वालियर, अतुल सक्सेना। पंचायतों में महिलाओं की भूमिका को सशक्त बनाने के लिए चुनाव के माध्यम से उन्हें जनता के बीच जाने का मौका संवैधानिक स्तर पर मिलता है लेकिन देखने में ये आता है कि महिलाओं के चुने जाने के बाद भी उनके पति उनकी जगह बैठकों और कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। लेकिन वे अब ऐसा नहीं कर सकेंगे। ग्वालियर कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी कौशलेन्द्र विक्रम सिंह (Gwalior Collector and DM Kaushalendra Vikram Singh) ने इस पर प्रतिबंध लगाते हुए इस आशय का आदेश जारी किया है।
पंचायत चुनावों में सरपंच अथवा पंच चुनकर आई महिलाएं संवैधानिक स्तर पर तो पद पर बैठी हैं लेकिन देखने में ये आ रहा है कि उनकी जगह उनके पति पंचायतों की बैठकों में शामिल हो रहे हैं, ग्राम सभाएं ले रहे हैं, अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं, जो पूरी तरह से गैर संवैधानिक है। इतना ही नहीं ये गैर सामाजिक भी है।
महिलाओं को सशक्त बनाने और समाज में उनकी भूमिका को मजबूत बनाने के लिए पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत पद आरक्षित हैं बावजूद इसके उनके सरपंच अथवा पांच चुनकर आने के बाद भी वे नहीं उनके पति सरपंची अथवा पंची कर रहे हैं जो महिला सशक्तिकरण की अवधारणा पर सवाल उठा रहा है।
ग्वालियर जिले में इस तरह की शिकायत सामने आने के बाद आज कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी कौशलेन्द्र विक्रम सिंह (Gwalior Collector and DM Kaushalendra Vikram Singh) ने एक आदेश निकालकर इसपर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने आदेश में स्पष्ट लिखा है कि यदि ग्राम पंचायत, सभा सभा अथवा पंचायत से जुड़ी किसी भी अहम् बैठक में महिला सरपंच (Ban on participation of sarpanch husband in panchayat meetings) अथवा महिला पंच (Ban on the participation of Panchapati in Panchayat meetings) की जगह उनके पति शामिल नहीं हो सकते।
कलेक्टर ने ग्वालियर जिले के अंतर्गत आने वाली जनपद पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को आदेश दिया है कि यदि इस तरह की कोई शिकायत आती है तो तत्काल सम्बंधित महिला सरपंच/पंच के विरुद्ध पद से हटाने की कार्यवाही प्रस्तावित करें। ऐसे मामलों में समय सीमा में कार्यवाही नहीं किये जाने पर इसे गंभीरता से लिया जायेगा। इसलिए निर्देशों का पालन कड़ाई से किया जाए।
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Atul Saxena
पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....
पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....